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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

विश्व पृथ्वी दिवस : 22 अप्रैल 2013

                             विश्व पृथ्वी दिवस

22 अप्रैल : विश्व पृथ्वी दिवस :
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साठ के दशक के के अंतिम काल में प्रकृति पर बढ़ते मानवीय अतिक्रमण और प्रदूषण के कारण से बढ़ती ग्लोबल वॉर्मिंग तथा ग्रीन हाऊस प्रभाव से घटते ऑजोन स्तर के निमित्त विश्व स्तर पर सुद्धिजनों का चिंतन मनन् प्रारम्भ हो गया था। आज ग्लोबल वार्मिंग यानी पृथ्वी के बढ़ते औसत तापमान से हो रहा जलवायु परिवर्तन पृथ्‍वी के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है। 22 अप्रैल, 1970 को पहली बार इस उद्देश्य से पृथ्वी दिवस मनाया गया था कि लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके। विश्व पृथ्वी दिवस की स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन (Gaylord Nelson) के द्वारा 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप में की गयी थी। हमारे राष्ट्र की 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी पर्यावरण अध्ययन विषय को विशेष रूप से प्रारम्भ किया गया था । 1970 से 1990 तक यह आन्दोलन संपूर्ण विश्व में विस्तारित हो गया । 1990 से इसे अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के रुप में मनाया जाने लगा और 2009 में संयुक्त राष्ट्र ने भी 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस के रुप में मनाने की घोषणा कर दी, तब से यह विश्व समुदाय का स्वजागरुकता दिवस बन गया है ।
भारतीय सनातन परम्परा में हजारों वर्ष पूर्व ही इस तथ्य की महत्ता को ऋषि मुनियों नें समझ परख लिया था । ऋग्वेद में पृथ्वी को ...माता: पृथ्यवा अहम् पुत्राभ्याम् की अवधारणा के तहत धरा को शाश्वत मातेश्वरी स्वीकार किया गया है । इस धरा पर विध्यमान सकल चराचर का सम्बन्ध मानव सहित प्रत्येक प्राणी यहाँ तक की जड़ प्रदार्थों के साथ स्थापित करनें के लिए ही वसुधैव कुटुम्बकम् की महान् विचारधारा को जन्म दिया गया था । सनातन परम्पराओं में वृक्षादि की पूजा का प्रचलन कोई मति जड़ता का नहीं अपितु हजारों वर्ष पूर्व भारतीय मनीषियों की पर्यावरण जागरूकता का प्रतीक है। प्रत्येक वृक्ष, पादप, लता आदि में किसी न किसी देवता अथवा देवी का आवास बतानें का औचित्य पर्यावरण सुरक्षा एवम् संवर्धन की वैज्ञानिक विचारधारा से है। वेदादि साहित्य में पीपल को भगवान विष्णु का आवासीय प्रतीक घोषित कर प्रात:काल उसकी पूजा अर्चना का विधान जो मनीषियों नें रचा था उसका हेतुक पश्चिमी विज्ञान जगत को अब ज्ञात हुआ है कि धरा पर यही एक मात्र वृक्ष है जो अति मद्धिम प्रकाश में भी प्रकाश संष्लेष्ण करनें में सक्षम है जिसके कारण यह वृक्ष 24 घण्टे याकि जीवन पर्यन्त ऑक्सीजन प्रदान करता है । गीतोपदेश में श्री कृष्ण नें अर्जुन से कहा था ....वृक्षाणाम् अश्वथ:...अर्थात वृक्षों में मैं अश्वथ यानि पीपल हूँ । जीवों के प्रति दयाभाव, उन्हें भी देवी देवताओं के वाहन ठहरानें के पीछे कारण जैवीय चक्र की सुरक्षा तथा पारस्थितिकी संतुलन की सतता था। वैज्ञानिक खाध्य श्रृंखला के सभी घटकों की सुरक्षा का भारतीय आध्यात्मिक दृष्टिकोण विश्व की अन्य किसी भी विचारधारा से अतुलनीय है ।वर्तमान संदर्भ में यह सभी दैन्यचर्या के कार्य बहुत प्रासांगिक हो गए हैं। हम भारतीयों को तो कुछ भी नवीन नहीं करना है बस अपनें जीवन को सनातन मूल्यों पर आधारित कर लें तो सभी लक्ष्य स्वत: ही प्राप्त हो जाएंगे जिनकी प्राप्ति की कामना सम्पूर्ण विश्व समुदाय आज के दिवस पर कर रहा है।
विश्व पृथ्वी दिवस

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