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शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

साप्ताहिक प्रतियोगिता : निबन्ध लेखन

 निबन्ध लेखन -- विषय -- क्या अन्ना हजारे का आन्दॊलन गाँधीवादी मूल्यॊं पर आधारित था ?
                           कुल प्रतिभागी ---  45 छात्र एवमं छात्राएँ ( कक्षा ग्यारह एवमं बारह मानविकी वर्ग)
                            सर्वोच्च स्थान पर चयनित -- छात्रा कौशल्या बुरडक कक्षा 12 वीं मानविकी

                               सर्वोच्च स्थान पर चयनित निबन्ध 
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 महात्मा गाँधी की तरह अन्ना हजारॆ का आन्दोलन देश एवमं देश की जनता को समर्पित था ।
 दोनों का संघर्ष सरकार के खिलाफ था ,अन्तर केवल इतना था कि गाँधी का संघर्ष विदेशी सत्ताधारियों के खिलाफ था वहीं अन्ना हमारे ही जन प्रतिनिधियों के विरूद्ध सत्य के लिए संघर्ष कर रहे थे । गाँधी जी वतन की आजादी के लिए लड़े थे अन्ना आजाद देश के नेताओं और राजनीतिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार से देश की जनता को मुक्त करवानें के लिए संघर्षरत थे । गत दो वर्षों से चल रहे आन्दोलन में अन्ना नें यथा संभव गाँधीवादी मूल्यों का पालन किया था । दोनों का मूल उद्दॆश्य जनहित से जुड़ा हुआ था ।जब जन लोकपाल विधेयक के लिए उन्होनें दिल्ली के जंतर मंतर पर 11 दिवस का अनशन किया था तब उन्होनं अपनी आयु और स्वास्थ्य की परवाह नहीं की थी । अन्ना का संघर्ष सरकार की हठधर्मिता के खिलाफ था । वहीं गांधी जी विदेशी तानाशाही के विरूद्ध संघर्षरत रहे थे ।अन्ना हमारी लोकतंत्रीय विद्रूपता के खिलाफ थे । अन्ना के आन्दोलनों नें वर्तमान युवा पीढ़ी को गाँधी युग की प्रासंगिकता की याद दिलवा दी ।
                            भले ही आन्दोलन अपनें अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति में सफल नहीं हो पाया तथापि एक जागृति की लहर जन मानस में जरूर व्याप्त हो गयी । सफलता - असफलता प्रयोग पर निर्भर करती है । जिस प्रकार अन्ना को समर्थन मिला था , उसनें गाँधीवादी सिद्धान्तों को पुर्नजीवन सा प्रदान किया था । गाँधी जी अपनें आन्दोलनों के संपूर्ण सूत्रधार स्वयं थे वहीं अन्ना के साथियों में से कुछ राजनीतिक महत्त्वकांक्षा पाले हुए थे , ऎसा गाँधी जी के साथ धी हुआ था । गाँधी के लाख प्रयासों के बाद भी भारत विभाजन होकर रहा ठीक उसी प्रकार अन्ना टीम के कुछ सदस्सयों के कारण आन्दोलन लक्ष्यविहीन होकर भटक गया ।
                                                                               गत कई माह से अन्ना टीम के सदस्यों के कतिपय विचार ऎसे गाहे बगाहे आ रहे थे जिनसे प्रतीत हो रहा था कि अन्ना मानसिक संताप मं हैं । कई मुद्दों पर टीम अन्ना बिखरती नजर आ रही थी , लग रहा था जैसे अन्ना को सीढ़ी बना कर कुछ साथी गण अपनी महत्त्वकाक्षाओं की पूर्ति हेतु आतुर हैं । टीम अन्ना बिखरती हुई प्रतीत हुई । अंततः हुआ भी वही , जिसका डर अन्ना सहीत सभी बुद्धिजीवियों को था । अन्ना का आन्दोलन ऎसे ही लोगों की भेंट चढ़ गया ।
                                                                     फिर भी इतना तो स्वीकार किया जा सकता है कि भले ही सफलता आन्दोलन से दूर रही पर जन मानस को झकजोर दिया की हमारे लक्ष्य क्या थे और हम कितना भटक गऐ । अन्ना नें हिंसक आन्दोलनों , उद्देश्यहीन प्रदर्शशनों की जगह आदोलनों को जो शांत और ओजस्वी धार प्रदान की उसकका महत्त्व वर्तमान पीढ़ी को समझना बहुत प्रासंगिक है। कहा जा सकता है कि 20 वीं सदी जहाँ स्वयं गाँधी की थी वहीं 21 वीं सदी गाँघीवादी विचारों तथा मूल्यों की पुनर्जागृति की है एवम् अन्ना उसके प्रथम प्रतीक है । 


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