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सोमवार, 19 नवंबर 2012

विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा

      विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा (D)

                 प्रथम पाठशाला भवन 

वर्तमान शाला से संलग्न छात्रावास भवन सन् 1931 से लेकर 1950-51 तक ग्राम की प्रथम पाठशाला के रूप में संचालित रहा था.इसके बारे में अधिक जानकारी हमें एक शाला लॅाग बुक से प्राप्त होती है. विवरण निम्नानुसार प्राप्त होता है -
                                        वर्तमान शाला भवन से जुड़ा हुआ एक छात्रावास भवन है जिसका कुल रकबा 2 बीघा के लगभग है. भवन परिसर की उत्तर से दक्षिण में लम्बाई 81 फीट है तथा पूर्व से पश्चिम का विस्तृत भाग लगभग 88 फीट है. इस परिसर के आँगन को ऊत्तर,पूर्व एवम दक्षिण में आधे भाग तक चार दीवारी जो लगभग 10 फीट ऊँची है. इस प्रकार यह भवन पूर्णतचा चाक चौबन्द सुरक्षित है. भवन का प्रवेश द्वार पूर्वोन्मुखी है जिस पर लोहे की मजबूत चद्दर से बना एक विशाल गेट लगा हुआ है. यह भवन एक ऊँची कुर्सी (आधार) पर उठा कर बनाया गया है. इस भवन के निर्माणकर्त्ता ग्राम के एक वणिक परिवार के मुखिया श्रीमान जैस राज जीवण मल गाड़ोदिया हैं .भवन प्रथमत आवासीय उपयोग के लिए बनवाया गया था परन्तु उक्त परिवार नें कुछ ही समय पश्चात नेछवा में स्थायी रूप से रहनें लगे थे अस्तु उक्त भवन को जन हिताय एवम धर्मार्थ एक धर्मशाला के रूप में ग्राम राम को भेंट कर दिया गया.भवन वास्तव में अत्यंत सुदृढ़ एवम विशाल है. भवन का मुख्य भाग परिसर की पश्चिमी दिशा में है, मुख्य भवन पूर्वोन्मुखी है. मुख्य द्वार के सापेक्ष लगभग 55 फीट कॆ सहन के पश्चात प्रथमत ऊँची कुर्सी कक्षों के आगे चबूतरे के रूप में विध्यमान है, इस चबूतरे की ऊँचाई 3 फीट एवम चौड़ाई 5 फीट है. भवन के बीचों बीच मुख्य द्वार की सीध में भवन  का मुख्य कक्ष है जिसके आगे मेहराबदार बारामदा भी बना हुआ है. इस मध्य कक्ष की अगल बगल अर्थात ऊत्तरी एवम दक्षिणी खण्ड भाग है. इन दोनों भागों में एक विशाल प्रशाल या हॅाल में एक दूसरे के सापेक्ष खुलते 2,2 कक्ष हैं अर्थात दाऐँ भाग में भी 4 कक्ष है तथा बाएँ भाग में भी 4 कक्ष हैं, इस प्रकार मध्य कक्ष के साथ मुख्य भवन में कक्षों की कुल संख्या 9 थी. तत्पश्चात भवन की दक्षिणी दिशा मे एक कक्ष पूर्वी दिशा की कतार में बढ़ता हुआ बना हुआ है जिसे रसोई अथवा पाकशाला के रूप मे् काम में लिया जाता है. इसके आगे दक्षिण दिशा की ओर खुलती गैलरी है जिसके द्वारा भवन के दक्षिण में बनें हुए अति विशाल जल कुण्ड की और आया जाया जाता था. इस गैलरी के आगे एक छोटा सा कक्ष है जो प्याऊ के रूप में काम में लिया जाता है. इस प्याऊ के आगे एक बड़ा कक्ष है इस प्रकार भवन की गैलरी को छोड़ कर कुल कक्षों की संख्या 11 है. प्याऊ के समीप ही ऊपर जानें के लिए घुमावदार सीढ़ियाँ है. भवन के चबूतरे पर चढ़नें के लिए दो जगह सीढियाँ बनी हुई है. इस भवन में जानें के लिए रास्ता मुख्य द्वार के आगे से शुरू होकर ऊत्तर दिशा में आगे बढ़ता हुआ उस रास्ते में खुलता है जो मीठड़ी से आस की ढ़ाणी होता हुआ ध्यावा तक जाता है.( वर्तमान में यह रास्ता भी है तथा भवन के आगे से शुरू होकर डीडवाना रोड़ तक विस्तृत भूमि क्षेत्र अनौपचारिक रूप से इसी भवन का आगे का खुला परिसर जैसा हो गया है.1981-82 में इस परिसर के चारदीवारी बना कर ग्रामीण जनों नें इसे अतिक्रमण से सुरक्षित किया था.तब से यह चारदीवारी उपस्थित है तथा परिसर का उपयोग ग्राम के युवा प्राय वॅालीबॅाल खेलनें हेतु करते हैं. वास्तव में उक्त जमीन गैरमुमकीन श्रेणी में आती है तथा ग्राम पंचायत ही इसकऔपचारिक स्वामी है. इसी कारण इस भूमि के दक्षिण पाश्र्व में जल कुण्ड के आगे गत वर्ष राजीव गाँधी सेवा केन्द्र का निर्माण भी हो चुका है. इसी भवन के आगे एक ऊँचा गोल किन्तु कम व्यास का एक गट्टा है,जो किसी अग्नि वेदिका जैसा दिखाई देता है.ग्राम जन बताते हैं कि यह सांगलिया पीठ के ऐक प्रारम्भिक संतों में से ऐक श्री आत्मा राम द्वारा स्थापित प्रथम धूणी है. वस्तुत ग्राम के 3 या 4 स्थानों पर सांगलिया पीठ के धूणे है जैसे वर्तमान में इस पीठ की मुख्य धूणी ग्राम के सदर बाजार में है जिसे आम तौर पर मौजी दास जी की धूणी के नाम से जाना जाता है. इसे आप गूगल मैप अथवा गूगल अर्थ पर अंकित देख सकते हैं.) 

   संगमरमर का लघु शिलालेख - भवन निर्माणकर्त्ता के बार में

   - यह पट्ट मात्र गाड़ोदिया परिवार दर्शित कर रहा है, वस्तुत :

   भवन निर्माणकर्त्ता एवम दानकर्त्ता भामशाह श्रीमान जैसराज

   जीवन मल गाड़ोदिया थे--   


     डीडवाना रोड़ के पश्चिम में स्थित भवन का दृश्य 


 

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