बाल दिवस का एक अन्य पक्ष
एक स्वतंत्र राष्टृ में निवास करनें वाले एवम संविधान द्वारा संरक्षित बचपन का एक अंधेरा पक्ष यह भी है, जो तेजी से विकसित हो रही हमारी छद्म अर्थ व्यवस्था का सत्य किंवा जानबूझ कर अचिन्हारित, अनदेखा किया जानें एक ज्वलंत प्रश्न है. कितनें बाल दिवस मना चुके हम ? कितनें नियमों अधिनियमों का पारित होना देख चुके हम ? और तो और शिक्षा के अधिकार कानून के पश्चात भी अभी तक अपनें जीवन में कहीं प्रकाश की किरण ढुँढ़ रहे इस बचपन को कब मिलेगा अपना वास्तविक बचपन ? साथ ही समाज के लिए भी एक गंभीर चुनौती कि बचपन के इस रूप का उत्तरदायित्तव आखिर किस पर है ?
बच्चों
के प्रति अपने अगाध प्रेम के लिए ही जवाहर लाल नेहरू देश दुनिया में ‘चाचा
नेहरू’ के रूप में प्रसिद्ध हुए लेकिन बच्चों के लिए सुनहरे भविष्य का
उनका सपना आज भी साकार नहीं हुआ है. बच्चों से इतना अधिक स्नेह होने के
कारण ही 14 नवंबर को उनके जन्मदिन को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. डायरेक्टर शेखर कपूर ने ट्वीट किया है कि भारत में 3 हज़ार बच्चे भूखे
मरते हैं... रोज़! एक टेलिकॉम स्कैम के पैसे से 5 साल तक भारत के सभी भूखे
बच्चों का पेट पाला जा सकता है. लोग
कारों में घूमते हुए लोग आइसक्रीम खाकर उसका कागज और पालीथीन फेंक देते
हैं. आजादी के 65 वर्ष गुजरने के बाद आज भी सड़कों पर दर्जनों बच्चे उस
कागज और पालीथीन को चुनने के लिए दौड़ते नजर आते हैं. जनगणना के आंकड़ों के
मुताबिक, 1991 में बाल मजदूरों की संख्या 1.12 करोड़ थी जो 2001 में बढ़कर
1.25 और 2011 में करीब दो करोड़ हो गई है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष शांता सिन्हा ने एक वार्ता
में कहा कि बाल मजदूरी आजाद भारत पर काला धब्बे के समान है. जवाहर लाल
नेहरू के सपनों को पूरा करने के लिए इस बुराई को पूरी तरह से समाप्त करने
और देश के सभी बच्चों को स्कूली शिक्षा के दायरे में लाने की जरूरत है.
चाचा नेहरू को बच्चों से कितना लगाव था, इसका अंदाजा तीन नवंबर 1949 को
बच्चों के नाम लिखे उनके पत्र से स्पष्ट होता है.उन्होंने लिखा था, ‘‘ कुछ
महीने पहले जापान के बच्चों ने मुझे पत्र लिखा और मुझसे उनके लिए हाथी
भेजने को कहा. मैंने भारत के बच्चों की तरफ से उनके लिए एक नन्हा सा हाथी
भेजा है.यह छोटा सा हाथी दोनों देशों के बच्चों के बीच सेतु का काम
करेगा।’’ चाचा नेहरू ने लिखा, ‘‘ हमारे चारों ओर सुन्दर दुनिया है और अच्छी
अच्छी चीजें हैं. लेकिन जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हम इन सुन्दर चीजों को भूलते जाते
हैं और छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे से लड़ते हैं । हम अपने कार्यालय में
बैठकर यह कल्पना करते हैं कि हम दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कर रहे
हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं कि आप अधिक समझदारी का परिचय
देंगे और इस सुन्दर धरती और जीवन के बारे में अपनी आंख और कान खोले रखेंगे. जब हम छोटे होते हैं तब एक दूसरे के साथ बिना भेदभाव और संकीर्ण भावना के
खेदकूद में व्यस्त रहते हैं. लेकिन उम्र बढऩे के साथ जातपात, क्षेत्रवाद,
रंग रूप, वेशभूषा, भाषा, रीति रिवाज अमीर गरीब जैसी संकीर्ण भावना हावी
होती जाती है. हम ऐसी बुराई को अपने उपर हावी नहीं होने देना है."
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