विध्यालय के भौतिक विकास की गाथा (A)
पाठशाला की स्थापना का आदि चरण
राजकीय साक्ष्यों,शाला रिकार्डस एवम् तत्कालीन पत्रावलियों के गहन सर्वेक्षण एवम् परिवीक्षण से ज्ञात होता है कि ग्राम मीठड़ी मारवाड़,खालसा ,परगना डीडवाना में पाठशाला का श्री गणेश जुलाई
प्रथम 1932 से विधिवत प्रारम्भ हुआ.पाठशाला पूर्व में चल रही उसी चटशाला भवन में प्रारम्भ हुई जहाँ 1929 से कोई पण्डित जी ग्राम के बालकों को अक्षर ज्ञान प्रदान कर रहे थे. उस समय डीडवाना परगनें में ऐक भी शासकीय विध्यालय नहीं था. तत्कालीन जोधपुर महाराजा नें इस क्षेत्र का प्रथम विध्यालय ग्राम मीठड़ी में ही खुलवाया था .इसके कई कारण हो सकते है,पहला यह कि यह ग्राम खालसा था एवम् ऐक व्यापारिक टृाँजिट केन्द्र के रुप में स्थित था. दि्वतीय यह कि यह
ग्राम कई प्रतिष्ठित वणिक परिवारों का निवास स्थान रहा है, विभिन्न गौत्र के कई अग्रवाल वणिक परिवार यथा मानावत, बाजारी, भड़ेच, झूरिया, मानावतों की ही ऐक शाखा पटवारी, कन्दोई इत्यादि की कई पीढियाँ वर्षों से निवास करती आ रही थी .इनमें मानावत परिवार जो कि बद्रूका उप गौत्र नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है का जोधपुर महाराजा के यहाँ काफी सम्मान था. 1929 से जिस भवन में चटशाला चल रही थी वस्तुत: वह भवन ग्राम के ही ऐक वणिक परिवार द्वारा निर्मित विशाल प्रांगण वाला भवन था जिसे उक्त परिवार ग्रामराम को पहले ही धर्मशाला के रूप में जनहिताय सौंप चुका था. इस भवन के निर्माता तथा दानकर्त्ता गाड़ोदिया जो मूलत गोयल: गौत्रीय थे जिसके मुखिया श्री जीवन राम गाड़ोदिया थे, जो पूर्वोत्तर भारत में अपना व्यापारिक साम्राज्य संभाल रहे थे. कालातंर में यह परिवार नेछवा में जाकर स्थापित हो गया जिनको आज भी नेछवा में मीठड़ी वालों के नाम से पुकारा जाता है. इसी परिवार द्वारा ग्रामराम को समर्पित धर्मशाला को पाठशाला के रूप में परिवर्तित कर दिया गया. तत्कालीन जोधपुर महाराजा कॆ द्वारा स्थापित इस विध्यालय का नाम था-" श्री दरबार लोअर प्राईमरी हिन्दी पाठशाला" ,जिसके प्रथम वैधानिक सत्र का प्रारम्भ 1 जुलाई 1932 को हुआ जिसका शासकीय - प्रशासकीय प्रबन्धन जिला नागौर के फौजदार के अधीन विभाग हिन्दी एवम संस्कृत तालिमी महकमे के पास था. इस प्रकार डीडवाना परगनें की प्रथम राजकीय स्कूल का प्रारम्भ मीठड़ी में हुआ. ज्ञातव्य है कि इस समय स्वयं डीडवाना में कोई शासकीय विध्यालय नहीं था, यहाँ पर प्रथम विध्यालय 1935 में प्रारम्भ किया गया जो वर्तमान में 'राजकीय बाँगड़ महाविध्यालय' है.
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