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रविवार, 2 दिसंबर 2012

विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा

       विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा (G) 

                        सत्र 1937-38 से 1940-41
सत्र 1937 -38 के मध्यावधि अवकाश के पश्चात प्रधानाध्यापक पद पर कार्यरत रहे श्री कृष्ण शर्मा का स्थानान्तरण हो जानें पर दो ही अध्यापक जो पूर्व से ही कार्यरत थे - श्री मूल राज एवमं श्री हनुमान दत्त ही शेष रहे. अब तक विध्यालय में प्राथमिक स्तर की सभी कक्षाएँ सुचारू प्रारम्भ हो चुकी थी. तथापि चालु सत्र में भी किसी अन्य अध्यापक की नियुक्ति नहीं की गई. संभवतया इसका कारण द्वितीय विश्व युद्ध रहा होगा क्योंकि तब औपचारिक रुप से ब्रिटिश भारत के अतिरिक्त देशी रियासतें भी ब्रिटेन के पराधीन थी. काँग्रेस के विरोध की उपेक्षा करते हुए ईंगलिश सरकार नें भारत को भी इस महायुद्ध में सम्मिलित घोषित कर दिया,जिसके कारण सभी देशी रियासतों को युद्ध काल में ब्रिटिश सरकार की आर्थिक एवम सैनिक मदद करना आवश्यक कर दिया गया था. भारतीय सैनिकों को जबरदस्ती यूरोप ले जाकर जर्मनी के विरूद्ध विभिन्न मोर्चों पर लगा दिया गया था. 1937 के चुनावों के पश्चात 11 प्रान्तों में गठित की गई प्रान्तीय सरकारों नें इसके विरोध में सामूहिक इस्तीफे दे दिए थे. राष्टृीय राजनीतिक परिवेश में हो रहे घटनाकर्मों तथा उथल पुथल से निश्चय ही किसी ग्राम की पाठशाला की ओर प्रशासन का ध्यान न आना स्वाभाविक था. तथापि दृष्टव्य है कि सत्र 1938-39 के प्रारम्भ होनें के पहले तक दो अन्य अध्यापकों की नियुक्ति विध्यालय में कर दी गई थी. पूर्व से कार्यरत श्री हनुमान दत्त को प्रधानाध्यापक पद पर पदोन्नति दे दी गई. इस प्रकार 1938-39 के सम्पूर्ण सत्र में पाठशाला का स्टाफ इस प्रकार था - 
   1.प्रधानाध्यापक - श्री हनुमान दत्त पुत्र श्री बालु राम.
                             ( वेतन 32 रूपए मासिक )
   2.अध्यापक      - श्री  मूलराज.
                             ( वेतन 30 रूपए मासिक ) 
  3.अध्यापक       - श्री मुकन दास पुत्र श्री शिवबक्स.
                           ( वेतन 30 रूपए मासिक )
  4.अध्यापक      - श्री लायक राम शर्मा पुत्र श्री गणेशी राम.
                           ( वेतन 46 रूपए मासिक )  
                यही स्टाफ सत्र 1939-1940 में यथावत रहा.
1940-41 में संपूर्ण विश्व सैन्य शक्ति, प्रभुत्तव एवम शोषण के अमानवीय दावानल में जल रहा था,मानवता बारूद के काले धुँए के आवरण से ढ़क गयी थी, मानवीय मूल्यों को मानव ही भस्मित कर रहा था. भारत में अब ब्रिटिश प्रभुत्तव के विरूद्ध स्वतंत्रता की भावना ब्रिटिश भारत के साथ साथ देशी रियासतों की जनता में भी तीव्र वेग से आड़ोलित हो रही थी. परिवहन तथा संचार के साधनों के अभाव में पाठशाला के अघ्यापक गण ही ऐसी सूचनाओं के ग्राम जनों में संप्रेषण के माध्यम रहे होंगे जैसा कि कतिपय वृद्ध सज्जनों नें हमें बताया भी है कि उस समय ग्राम के कई सुधिजन देर रात तक अध्यापकों के यहाँ बैठ कर चर्चाएँ करते थे.1940-41 सत्र के प्रारम्भ से पूर्व दो अध्यापकों का स्थानान्तरण अन्यत्र हो गया - श्री मूलराज एवम श्री हनुमान दत्त लम्बे समय तक अपनी सेवाएँ प्रदान कर चले गए. इसी सत्र में एक अन्य अध्यापक श्री मोती लाल की नियुक्ति विध्यालय में हो गई. श्री लायक राम शर्मा को प्रधानाध्यापक पद पर पदोन्नत कर दिया गया. इस प्रकार सत्र 1940-41 का विध्यालय स्टाफ निम्न अनुसार रहा - 
  1.प्रधानाध्यापक   -       श्री लायक राम शर्मा
                              (वेतन 47 रूपए मासिक) 
  2.अध्यापक       -        श्री मुकन दास
                              (वेतन 31 रूपए मासिक)
  3.अघ्यापक       -        श्री मोती लाल
                              (वेतन 28 रूपए मासिक).
सत्र 1940-41 में यह शाला स्टाफ पूरे सत्र कार्यरत रहा.
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