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गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

विविधा - हमारी धरोहर

                            तिरुमळा तिरुपति बालाजी

                      स्थिति - तिरूमाळा, जिला चित्तूर, आन्ध्र प्रदेश.
                   ऐतिहासिक संदर्भ - 
                                               1. इस मन्दिर की स्थापना पल्लव वंश की महारानी "संवाय" नें की थी. उन्होंनें ही सर्व प्रथम यहाँ रजत धातु निर्मित "भगवान व्यंकटेश" की मूर्ति की स्थापना की थी.
                                                2. "संगम साहित्य" ( 500 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के मध्य रचित साहित्य में उपस्थित कविताओं के अनुसार तिरुपति में एक विशाल चींटियों के रहनें का आवास अर्थात "बाँबी" थी. एकदा आकाशवाणी हुई कि कोई है जो इन चींटियों को नियमित भोजन करवाएगा ?. यह आकाशवाणी एक कृषक नें सुन ली. वह नियमित रूप से इस दैवीय आदेश का पालन करता रहा. यह बात जब उस जनपद के शासक के पास पहुँची तो उसनें भी अपनें स्तर पर चींटियों के लिए दुध की व्यवस्था करवा दी. बाँबी पर लगीतार दुध डाले जानें के कारण वहाँ दबी हुई भगवान व्यंकटेश की प्रतिमा जो कई सदियों से धरा के नीचे दबी पड़ी थी, बाहर निकल आई. तब उसे श्रद्धापूर्वक वहीं स्थापित किया गया था.
                                         3.एक अन्य मिथक के अनुसार 12 वीं सदी में भक्ति परम्परा के प्रवर्तक श्री रामानुज के आगमन के पश्चात इस मन्दिर की स्थापना हुई थी. इसे यों भी कहा जा सकता है कि दक्षिणी भारत में वैष्णव विचारधारा के उद्भव का प्रतीक है यह मन्दिर.
                                         4. साक्ष्यों से स्पष्ठ होता है कि जब चोल साम्राज्य अपनें उत्कर्ष काल में था तब यह मन्दिर पूर्व से ही अपनी महत्ता के चरम शिखर पर था.तिरुपति के इतिहास के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद रहा है. परन्तु एक बात स्पष्ट रुप से सभी इतिहासकार स्वीकारते हैं कि 5वीं शताब्दी तक यह मंदिर धार्मिक केन्द्र के रुप में स्थापित हो चुका था. तिरुपति मंदिर कई शताब्दी पूर्व बना मंदिर है. तमिल साहित्य का संगम साहित्य बहुत ही महत्वपूर्ण है. उसमें बहुत सी ऎतिहासिक जानकारियाँ मिलती हैं. तमिल साहित्य के एक संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि प्राचीन समय के चोल वंश, होयसाल वंश और विजयनगर के राजाओं ने इस मंदिर को आर्थिक रुप से योगदान देकर इसके निर्माण में हिस्सा लिया.
                                      5.कई इतिहासकार तिरुपति मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से मानते हैं, तब काँचीपुरम के शासक पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था. उसके बाद 15वीं सदी के विजयनगर वंश के शासन के दौरान भी मंदिर की ख्याति सीमित थी.  15वीं सदी के बाद तिरुपति मंदिर दूर-दूर तक प्रसिद्ध होने लगा. अंग्रेजों के शासन के दौरान सन 1843 से लेकर 1933 तक इस मंदिर के प्रबंधन कार्य को हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला. 1933 के पश्चात इस मंदिर के प्रबंधन का जिम्मा मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया. सरकार ने एक प्रबंधन समिति बनाई जिसका नाम "तिरुमाला-तिरुपति" रखा गया और इस समिति के हाथों में मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेवारी दे दी गई.आंध्र प्रदेश राज्य का गठन होने के बाद तिरुमाला-तिरुपति समिति का पुनर्गठन किया गया और एक प्रशासनिक अधिकारी को आँध्र प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रुप में नियुक्त किया गया.

 
                      निर्माण की शैली -  द्रविड़ शैली.
                      वास्तु की विशेषताएँ - मन्दिर स्थापत्य की कतिपय विशिष्टताएँ निम्न हैं - 
                           1.मन्दिर तीन परकोटों से घिरा हुआ है.
                           2.परकोटों पर गोपुर बनें हुए हैं,जिन पर जड़े गए 
                             स्वर्ण कलश अद्भूत कला के प्रतीक हैं.
                           3.मन्दिर के ठीक सामनें स्वर्ण निर्मित दीप्तिमान
                             स्तम्भ है.
                           4.सभा मण्डप के समीप एक बंद हौज है. इस हौज
                             को यहाँ "हुण्डी" कहा जाता है. भक्त गण अपनी 
                             मनोकामनाओं की पूर्ति होनें पर अपनी भेंट इसी
                             हौज में डालते हैं. यह हौज मन्दिर की आमदनी  
                             का साधन है.
                           5. मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार के समीप "जय" 
                              तथा "विजय" की की प्रतिमाएँ लगाइ हुई हैं. 
                           6. मन्दिर के गर्भ गृह में "भगवान व्यंकटेश" की 
                             प्रतिमा स्थापित है.
                           7. मन्दिर के समीप "पुष्करणी सरोवर" है,जहाँ 
                               आनें  वाले भक्तगण दर्शन पूर्व स्नान करते हैं.
                           8. प्रतिदिन यहाँ आनें वाले श्रद्धालुओं की संख्या 
                              औसतन 40,000 हैं.       
                           9. भारत को मंदिरों का महासागर कह सकते है.   
                               छोटे-बडे़ सभी मंदिरों को मिलाकर लाखों मंदिर 
                               भारत में मौजूद हैं. इन सभी मंदिरों में भारत के
                               आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले में तिरुपति 
                               मंदिर सबसे अधिक वैभवशाली मंदिर है.  
                           10.हर साल करोड़ों व्यक्ति इस मंदिर में दर्शन 
                               के लिए आते हैं. वर्ष में एक दिन भी ऎसा नहीं है 
                               जब इस मंदिर में लोगों की भीड़ ना लगी हो.
                               भारत में स्थित सभी तीर्थस्थानों में से सबसे 
                               अधिक आकर्षण का केन्द्र यह मंदिर है. इस 
                              मंदिर में सबसे अधिक तीर्थयात्री आते हैं. 
                               तिरुपति मंदिर विश्व के सबसे अधिक धनी 
                               धार्मिक स्थानों में से एक माना जाता है. यह 
                              मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और 
                              शिल्पकला का एक सजीव उदाहरण है.  
                           11.ऎसा माना जाता है कि तिरुपति मंदिर की 
                               उत्पत्ति वैष्णव सम्प्रदाय से हुई है. इस संप्रदाय
                               को मानने वाले व्यक्ति समानता और प्रेम का 
                               सदेश देते हैं. भगवान तिरुपति के दर्शन करनें 
                              वाले हरेक व्यक्ति को प्रभु की कृपा प्राप्त होती है.
                               भगवान विष्णु का ही अवतार प्रभु वेंकटेश्वर हैं.
                               उनके अन्य नाम श्रीनिवास और प्रभु बालाजी हैं. 
                               हिन्दु धर्म के अनुयायी तिरुपति के दर्शन को 
                               अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं. 
                               यहाँ आने वाले तीर्थयात्री दर्शन के बाद अपने 
                               जीवन को सकारात्मक दिशा देते हैं.
  

                   तिरुमाला पर्वत

तिरुपति मंदिर समुद्र तल से 3200 फीट की ऊँचाई पर तिरुमाला पहाड़ पर स्थित है. तिरुमाला की पहाड़ियों पर बने इस मंदिर को वैंकटेश्वर मंदिर भी कहा जाता है. इसे श्रीनिवास भगवान का मंदिर भी मानते हैं. श्रीनिवास भगवान विष्णु का ही नाम है. तिरुमाला पर्वत सात पहाड़ियों में से एक पहाडी़ तिरुमाला पर स्थित है. बाकी पहाड़ियाँ भगवान विष्णु के शेषनाग के फनों के समान लगती हैं. ऎसा भी कहा जाता है कि तिरुमाला-तिरुपति के चारों ओर की पहाड़ियाँ शेषनाग के सात फनों के आधार पर "सप्तगिरी" कहलाती हैं. यह सात पहाड़ियाँ "शेषाचलम" अथवा "वेंकटाचलम" भी कहलाती हैं. तिरुमाला पहाड़ियाँ विश्व में दूसरे स्थान पर स्थित सबसे प्राचीन चट्टानें मानी जाती हैं.भगवान वेंकटेश का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाडी़ पर है. यह पहाडी़ "वेंकटाद्री" के नाम से प्रसिद्ध है. भगवान व्यंकटेश अथवा बालाजी को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है. प्राचीन कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी तालाब के किनारे निवास किया था. यह तालाब तिरुमाला पर्वत के पास स्थित है.  एक अन्य जनश्रुति के अनुसार 11वीं शताब्दी में संत रामानुज ने तिरुमाला पर्वत की सातवीं पहाडी़, जिस पर मंदिर बना है, पर चढा़ई की थी. प्रभु वेंकटेश्वर जिन्हें भगवान श्रिनिवास भी कहते हैं, संत रामानुज के सामने प्रकट हुए और उन्हें दर्शन दिए. दर्शन देकर संत रामानुज को आशीर्वाद दिया. भगवान का आशीर्वाद मिलने पर वह 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे. जब तक संत रामानुज जीवित रहे तब तक जगह-जगह घूमकर भगवान वेंकटेश की ख्याति फैलाने का कार्य करते रहे.

                                                         

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