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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा

                         विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा (J)

                       स्वतंत्रता का शुभ दिवस एवम विध्यालय
                             सत्र 1947-1948 
भारत के स्वाधीनता संघर्ष का पटाक्षेप हुआ 15 अगस्त 1947 को, जब आधी रात को भारत की पूर्व गठित अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री पण्डित श्री जवाहर लाल नेहरू नें सेंट्रल हॉल नई दिल्ली में देश की आजादी का घोषणा पत्र पढ़ा. उन्होनें अपनें उद्बोधन में कहा - आज की रात्रि जब विश्व की आधी आबादी निद्रा में है, एक महान् राष्ट्र का जागरण हो रहा है. सर्वत्र जश्न एवम् प्रसन्नता का वातावरण था परन्तु वास्तव में राष्ट्र की आत्मा रो रही थी. आजादी के अनथक संघर्ष में हमनें बहुत कुछ खोया - पाया वहीं सफलता की अंतिम परिणिती में हम सब कुछ खो देंगे, यह दुस्वप्न शायद ही किसी नें देखा होगा. आजादी की अंतिम कीमत रही इस महान् देश के शरीर पर सांप्रदायिकता का चाकू घोंप कर इसका विभाजन. एक बारगी लोगों को ऐसा भी लगनें लगा कि आजादी की प्राप्ति कोई विराट एतिहासिक भूल तो नहीं हो गई है. भारतीय गंगा जमुनी संस्कृति से नितांत अनभिज्ञ अंग्रज ऑफिसर रेडक्लिफ को भारत बुलवाया गया जिसनें मेज पर रखे भारतवर्ष के प्रकृति द्वारा स्वत निर्मित भौगोलिक नक्शे पर अपनी पेंसिल से टेढ़ी मेढी रेखाएँ खींच कर महान राष्ट्र को मुलत 2 भागों में परन्तु भौगोलिक रूप से 3 भागों में विभाजित कर दिया. उन विभाजन रेखाओं के आर पार विश्व सभ्यता इतिहास की मानवीय सदभाव की एक मात्र प्रतीक भारतीय जनसंख्या के दल ऊस पार से इस पार तो इस पार से ऊस पार जा रहे थे. संपूर्ण उत्तरी भारत सहित पूर्वी एवम पश्चिमी क्षेत्रों में कई पीढियों से साथ साथ जीवन जीनें वाले समुदायों में अकारण ही किन्तु कुछ अवयवों द्वारा जान बूझ कर प्रचारित - प्रसारित किए गए संदेह नें गंगा जमुनी संस्कृति के तानें बानें को एक झटके में ही विदीर्ण कर डाला. विभाजन रेखाओं के दोनों ओर रक्त की नदियाँ और मानव शवों के के ढेर किसी शैतानी वहशत के सक्रिय होकर मानवता और सबसे बड़ी बात इस महान राष्ट्र की हत्या की कहानी सांगोपांग कह रहे थे. महान राष्ट्र सैद्धांन्तिक तौर पर 2 भागों में और भौगोलिक रूप से 3 भागों में विभाजित हो चुका था ....1.भारत एवम 2. पाकिस्तान जिसके भारत भूमि के पूर्ब और पश्चिम दोनों पार्श्वों में दो भाग थे- पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान का पाकिस्तान) तथा पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान का बांग्लादेश). स्वतंत्रता, विभाजन की त्रासदी एवम विभाजित किंतु स्वतंत्र भारत का अपना एक पृथक इतिहास है. हमारा मुख्य जाननें वाला विषय है इस समय ग्राम मीठड़ी तथा विध्यालय की तत्कालीन स्थिति.
                              ग्राम मीठड़ी स्वतंत्रता के समय सैद्धान्तिक रूप से मारवाड़ अथवा जोधपुर रियायत के अन्तर्गत आनें वाला खालसा ग्राम था. स्वतंत्रता का प्रथम जयघोष ब्रिटिश भारत के 11 प्रान्तों में हुआ था, देशी रियासतों के सम्बन्ध में एक पृथक व्यवस्था स्थापित की गई थी जिसका उल्लेख यहाँ अप्रासंगिक होगा. राजपूताना की 19 प्रमुख रियासतों एवम  3 रजवाड़ों को भारतीय संघ में सम्मिलित करनें का एक लम्बा एवम जटिल प्रकरण चला था जिसके पीछे रियासतों के लिए तय की गई शर्तें एवम देशी शासकों की हठधर्मिता मुख्य कारण रही थी. जोधपुर महाराजा हनुवंत सिंह लम्बे वार्ता दौरों तथा प्रयासों के बाद वृहत्त राजस्थान संघ में सम्मिलित होकर मारवाड़ राज्य को ऱाष्ट्रीय मुख्य धारा से जोड़ चुके थे. यध्यपि राजस्थान एकीकरण की प्रक्रिया 1956 में जाकर संपूर्ण हुई थी.आजादी के तुरंत पश्चात भारत के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्रों में व्यापक पैमानें पर हुई साम्प्रदायिक हिंसा का दावानल मारवाड़ रियासत की सीमाओं को स्पर्श भी नहीं कर पाया था. तथापि ग्राम के कायमखानी समाज के 4 परिवार सेना विभाजन के अन्तर्गत पाकिस्तान के हिस्से में आनें के कारण अपनें परिवारों सहित जोधपुर - मुनाबाब रेल्वे लाईन से पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हैदराबाद, मीरपुर खास के आसपास के ग्रामों में जाकर परदेशी हो गए. बताया गया है उन बुजुर्गों की प्रारम्भिक शिक्षा इसी विध्यालय में हुई थी. एक रंगरेज अथवा मुस्लिम छींपा परिवार जिसनें 1947 में प्रवजन कर मीठड़ी की जगह कराची को अपना मुकाम बनाया था, के एक वृद्ध सज्जन 2003 में जब अपनें इस पैतृक ग्राम में आए थे तब उनकी आँखें नम हो गई थी अपनी प्रथम स्कूल के पुनर्दर्शन पाकर.1947 में स्वतंत्रता के एक माह पूर्व प्रारम्भ हुए सत्र के शाला परिवार एवम विध्यार्थियों नें 16 अगस्त 1947 का दिवस किस प्रकार अनुभूत किया होगा इसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है. कॉंग्रेस के सुराज की कल्पना को साक्षात साकार होते देखनें का अनुभव निश्चय ही अवर्णनीय रहा होगा. सत्र 1947-48 निश्चय ही आजादी की नवीन उमंगों, उद्दाम उल्लास तथा आशाओं की ऊँची उड़ान के साथ चल कर व्यतीत हुआ होगा. इस सत्र में कार्यरत रहहे शाला स्टॉफ का विवरण निम्न है - 
          1.मुख्य अध्यापक - श्री सीताराम (वेतन 44 रूपए मासिक)
          2.सहा. अध्यापक  - श्री मोहन लाल (वेतन 35 रूपए मासिक)
          3.सहा. अध्यापक  - श्री सिकन्दर अली पुत्र श्री गन्नी मोहम्मद
                                     (नव नियुक्त वेतन 31 रूपए मासिक)
         4.सहा. अध्यापक  - ईब्राहीम खान पुत्र श्री चाँद खान
                                     (नव नियुक्त वेतन 31 रूपए मासिक)
         5.सहा. अध्यापक  - श्री वाटसन पुत्र मिस प्रेमाजी
                                     (नव नियुक्त वेतन 41 रूपए मासिक) 
         6.श्री हनुमाना राम - चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी (वेतन 24.50 रूपए मासिक)
ऊपर दी गई स्टॉफ सूची से स्पष्ठ ज्ञात हो जाता है कि गत सत्र में कार्यरत रहे मुख्य अध्यापक बीरबल सिंह सहित एक सहायक अध्यापक श्री हस्ती मल का स्थानान्तरण अन्यत्र हो गया वहीं तीन नए सहायक अध्यापकों श्री सिकन्दर अली, श्री ईब्राहिम खान एवम श्री वाटसन की नियुक्ति के साथ ही अध्यापकों की संख्या 5 हो गई थी. श्री वाटसन पाठशाला में नियुक्त हेनें वाले प्रथम एवम अन्तिम एंग्लोइंडियन अध्यापक थे जिनके पिता अजमेर स्थित ऐ.जी.जी. के कार्यालय में काम करनें वाले अंग्रेज कार्मिक थे.
विभाजन की त्रासदी        

जोधपुर नरेश हनुवंत सिंह की नेहरू जी के साथ विशेष बैठक
14 अगस्त 1947 की अर्द्ध रात्रि को सत्ता हस्तान्नतरण
स्वतंत्रता या कि जान बचानें की दौड़
स्वतंत्रता एवम विभाजन का असली स्वरूप

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