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शनिवार, 22 दिसंबर 2012

विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा

                             विध्यालय के भौतिक एवम् शैक्षिक विकास की गाथा (I)

                                        सत्रावधि 1945-46 से 1946-1947
                                                            सत्र 1945-1946
 1945-46 का राष्टृीय परिदृश्य स्वराज, स्वतंत्रता, स्व संविधान जैसी घटनाओं से औत प्रोत हो रहा था. संस्था का तत्कालीन राष्टृीय उद्दाम भावनाओं क आम जन में संप्रेषण करनें में निश्चय ही आधारभूत महत्त्व रहा होगा, यध्यपि इसका हमें कोई लिखित साक्ष्य तो प्राप्त नहीं होता तथापि उस काल में छात्र रूप में अध्ययन करनें वाले बुजुर्ग पीढ़ी के कतिपय सज्जनों के अनुसार राष्टृीय घटनाक्रम से ग्राम जनों को परिचित करवानें में अध्यापकों तद्नुसार शाला का विशेष महत्त्व रहा था.  इस सत्र का शाला स्टॉफ पूर्व सत्र कतरह निम्नानुसार रहा था -
          1.मुख्य अध्यापक    -    श्री बीरबल सिंह वेतन 44 रूपए मासिक.
          2.सहायक अध्यापक -  श्री हरिशरण वेतन 40 रूपए मासिक.
          3.सहायक अध्यापक -  श्री भँवर लाल वेतन 41 रूपए मासिक.
          4.सहायक अध्यापक -  श्री हस्तीमल वेतन 36 रूपए मासिक. 
                                                    सत्र 1946-1947
नए सत्र के प्रारम्भ से ही 1946-47 में शाला परिवार में स्टॉफ सदस्यों की संख्या पाँच हो गई, परन्तु नया जुड़नें वाला सदस्य अध्यापक नहीं था अपितु पाठशाला के इतिहास में नियुक्त होनें वाले प्रथम चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे जिनके सुकृत्यों का वर्णन आज भी ग्राम जनों की जुबान है. यह सज्जन थे श्री हनुमाना राम पुत्र श्री शिवजी राम निवासी ग्राम रायधना . रायधना ग्राम मीठड़ी ग्राम से उत्तर में लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. पाठशाला में पानी पिलानें एवम रात्रि सुरक्षा के लिए यह पद सृजित हुआ था. लॉग बुक की पृष्ठ संख्या 101 पर बाकायदा नवीन खाता या विवरण पन्ना शुरू करते हुए लिखा है - श्री हनुमान पुत्र श्री शिवजी राम जाट, निवासी - रायधना ,पद - चपरासी, योग्यता - , जन्म तिथि 18-09-1924 ,नियुक्ति तिथि 01-07-1947,वेतन श्रृंखला 24-01- 34 अंकित है. अर्थात प्रथम वेतन 24 रूपए था, जो उक्त लॉग बुक में वर्णन लिखे जानें के समय (1961) 46 रूपए मासिक हो गया था. ज्ञात तथ्य यह भी है कि श्री हनुमाना राम नें अपना संपूर्ण सेवा काल इसी विध्यालय में ही व्यतीत किया.1984 में सेवा निवृत्ति के पश्चात जीवन की अंतिम शवाँस तक विध्यालय के सेवा कार्य से जुड़े रहे. विध्यालय ही नहीं ग्राम मीठड़ी सहित समीपस्थ ग्रामों के निवासियों में वे "बाबा" के उपाख्य नाम से प्रसिद्ध थे. अपनें सेवा काल में बाबा नें वर्तमान शाला परिसर, शाला के ठीक ऊत्तरी पार्श्व में लगभग 4 बीघा क्षेत्र का "श्री मानावत राष्टृीय औषधालय परिसर", पुरानें विध्यालय जिसे वर्तमान में हम "जीवन छात्रावास" के नाम से जानते हैं के परिसर, पाठशाला के पीछे विस्तृत लगभग 12 बीघा खैल मैदान परिसर में पीपल, बरगद, नीम, आड़ू नीम, शीशम, सरेस, कीकर, खेजड़ी इत्यादि के कई वृक्ष लगाए जिनकी संख्या 50 से ज्यादा थी. ऊनमें से 80 प्रतिशत पेड़ आज भी बाबा द्वारा की गई सेवा के साक्षी रूप में विध्यमान है. बताया गया है कि उन विकट वर्षों में पानी के एक कलश के लिए ग्राम जन कई कोस दूरी तक चले जाते थे, रात रात भर मीठे पानी के कुओं पर लोग अपनी बारी आनें की प्रतिक्षा करते थे. उन दिनों में बाबा नें किस प्रकार कलशे भर भर कर,कहाँ कहाँ से मीठा पानी लाकर इन पेड़ पौधों को पाला पोसा होगा, उस महान् कार्य को शब्दों उल्लेखित कर पाना कठिन है. कह सकते हैं कि उनका यह प्रयास किसी भागीरथ प्रयत्न से कम नहीं था. बाबा की अपनें नत्तिक कार्य के अतिरिक्त प्रकृति प्रेम एवम प्राकृतिक संपदा को संरक्षित रखनें की य़ह कार्य साधना किसी घोर तपस्या से कमतर नहीं थी.जहाँ तक अध्यापक बन्धुओं के संदर्भ की बात है सत्र के मध्य 2 सहायक अध्यापकों का अन्यत्र स्थानान्तरण हुआ वहीं 2 सहायक अध्यापक नव नियुक्ति होकर शाला परिवार से जुड़े. सत्र 1946-1947 के शाला स्टॉफ का विवरण निम्नानुसार है -
         1.मुख्य अध्यापक - श्री बीरबल सिंह, वेतन 43 रूपए मासिक.
         2.सहा.अध्यापक -   श्री हस्तीमल, वेतन 37 रूपए मासिक.
         3.सहा.अध्यापक -   श्री सीताराम पुत्र श्री गोविन्द लाल 
                                      ( नव नियुक्ति,वेतन 43 रूपए मासिक)
        4.सहा.अध्यापक -     श्री मोहन लाल (नव नियुक्ति, वेतन 34 रूपए मासिक.
        5.सहायक कर्मचारी - हनुमाना राम,वेतन 24 रूपए मासिक .
जिमखाना परेड कोलकाता 1946

एक त्रासदी - विभाजन 1947
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