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बुधवार, 12 दिसंबर 2012

विविधा

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                     शोर (अति उच्च ध्वनि) एवम स्वास्थ्य
कम्पन करने वाली प्रत्येक वस्तु ध्वनि उत्पन्न करती है और जब ध्वनि की तीव्रता अधिक हो जाती है तो वह कानों को अप्रिय लगने लगती है. इस अवांछनीय अथवा उच्च तीव्रता वाली ध्वनि को शोर कहते हैं. शोर से मनुष्यों में अशान्ति तथा बेचैनी उत्पन्न होती है. साथ ही साथ कार्यक्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. वस्तुतः शोर वह अवांक्षनीय ध्वनि है जो मनुष्य को अप्रिय लगे तथा उसमें बेचैनी तथा उद्विग्नता पैदा करती हो. पृथक-पृथक व्यक्तियों में उद्विग्नता पैदा करने वाली ध्वनि की तीव्रता अलग-अलग हो सकती है. वायुमंडल में अवांछनीय ध्वनि की मौजूदगी को ही 'ध्वनि प्रदूषण' कहा जाता है. ध्वनि प्रदूषण से होने वाले खतरों की गम्भीरता को देखकर नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक राबर्ट कोच ने आठ दशक पूर्व प्रतिक्रिया व्यक्त की थी कि भविष्य में एक दिन ऐसा आएगा, जब मनुष्य को स्वास्थ्य के सबसे बड़े शत्रु के रूप में शोर से संर्घष करना पड़ेगा. 
            कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य -
1.कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय के पूर्व चान्सलर डॉ. वर्ननुडसन का मत  है कि शोर एक धीमी गति वाला मृत्युदण्ड है.
2. शोर एक अदृश्य प्रदूषण है जो धुँध की भाँति मानव के स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव डालता है. शोर के कारण मानव स्नायु तंत्र एवम मस्तिष्क की आन्तरिक संरचना सर्वाधिक प्रभावित होती है. 
3. शोर का घातक प्रभाव मनुष्य को धीरे धीरे मृत्यु की ओर धकेलता है. 
4.1946 में क्षय रोग के जीवीणुओं पर खोज करनें वाले राबर्ट काच नें एक भविष्यवाणी की थी- एक दिन मानव जाति को शोर के विरूद्ध सा युद्ध लड़ना पड़ेगा जैसा आज हम हैजे के खिलाफ लड़ रहे हैं.
5. जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान एवम भारतीय उपनिषद संहिता के महान ज्ञाता आर्थर शोपेनहावर का कथन था - शोर मनुष्य के मस्तिष्क को अशांत तथा उसकी चिंतन क्षमता को नष्ट कर देता है.
6. ध्वनि की तीव्रता अथवा मात्रा को डेसीबल इकाई से दर्शित किया जाता है, अर्थात ध्वनि का मात्रक डेसीबल कहलाता है.
7. हवा के द्वारा पेड़ों की पत्तियों में होने वाली सरसराहट की ध्वनि 10 डेसीबल होती है.
8. मानव द्वारा किए जानें वाले वार्तालाप में ध्वनि की तीव्रता 60 डेसीबल होता है.
9. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मानव शरीर के लिए लिए 45 डेसीबल तीव्रता की ध्वनि को हानि रहीत मानक ठहराया है. 
10. 188 डेसीबल से अधिक तीव्रता वाली ध्वनि मानव की मृत्यु का कारण बन सकती है
11. 150 से 155 डेसीबल की ध्वनि तीव्रता मानव त्वचा को जला भी सकती है.
12. लगातार 80 डेसीबल तीव्रता वाले परिवेश में रहनें वाला व्यक्ति स्थायी बहरेपन के अतिरिक्त कई अन्य रोगों से भी ग्रस्त हो जाता है. 
        ध्वनी प्रदूषण का मानव जीवन पर प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण (शोर) का मानव जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। लगातार शोर में रहने पर मानसिक तनाव, कुंठा, चिड़चिड़ापन, बोलने में व्यवधान, बैचैनी, नींद की कमी आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। जिन मजदूरों को अधिक शोर मे काम करना होता है वे हृदय रोग, शारीरिक शिथिलता, रक्तचाप आदि अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते है। शोर से हार्मोन सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं जिनसे शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन हो जाते हैं. विस्फोटों तथा सोनिक बमों की अचानक उच्च ध्वनि से गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है. लगातार शोर में रहने वाली महिलाओ के नवजात शिशुओं में विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं. दीर्घ अवधि में ध्वनि प्रदूषण में रहने वाले लोगो में न्यूरोटिक मेण्टल डिसॉर्डर हो जाता है, मांसपेशियों में तनाव तथा खिंचाव हो जाता है और स्नायुओं में उत्तेजना पैदा हो जाती है. शोर के कारण रक्त मे कोलेस्ट्राल तथा कार्टीजोन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे बहुत से रोगों की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं. तीव्र शोर के कारण वायुमण्डल का घनत्व बढ़ जाता है. इस स्थिति का सामना करने के लिए मनुष्य को 1600 कैलोरीज की अतिरिक्त आवश्यकता होती है.

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