एक राजस्थानी कविता
बादळी
गाँव गाँव में बादळी, सुणा सनेसो आज ।
ईदंर बुढ़ण आवियो, तूठण मरूधर आज ।।
ऊंडी अंबर में ऊठी, गह डम्बर घहराय ।
बरस सुहाणी घण घटा, सारी धरा समाय ।।
काळी काळी काठंळी, उजऴी कोरण जोय ।
उत्तर दिस में उठियो, जाणै हिंवाळो होय ।।
आज कलाळण उमठी, छाँड़ै खूब हुलूस ।
सौ सौ कोसां बररसी, करसी काळ विधूंस ।।
दिन में रात जगावती, बादळियां बरसात ।
कदै अमावस सी करै, चट पूनम री रात ।।
भूरी काळी बादळी, बीजक रेख खिंचाय ।
जाण कसौटी उपरां, सुधरण रेख सुहाय ।।
कंचन नगरी सी बणी, बादळियां स्यूँ आज ।
झिळमिळ कांगरा सूरज स्वागत आज ।।
जड़ से थोड़ी ऊपरां, काळी बादळ रेख ।
भींत बणाई मूंगिया, सुथरो सा गर देख ।।
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